Tuesday, 31 December 2024

मंगलमय नववर्ष...

मंगलमय नव वर्ष...

अभिनंदन नव वर्ष का, उत्सव हास हुलास।
पावनता संकल्प की, अंतस भरे उजास।।१।।

शुभ मंगलमय वर्ष हो, बगरे दिशि-दिशि हर्ष।
खुशियों में झूमें सभी, पल-पल हो उत्कर्ष।।२।।

नयी उमंगें साथ ले, आया नवल विहान।
सुख के पारावार में, डूबा सकल जहान।।३।।

नयी सुबह नववर्ष की, नया जोश-उल्लास।
स्वप्न नया आह्लाद भर, करता मुख पर लास।।४।।

आने वाले साल से, कहे पुराना साल।
रहे अधूरे काम जो, आकर उन्हे सँभाल।।५।।

आने वाले साल से, कहे पुराना साल।
तेरा भी इक साल में, होगा मुझसा हाल।।६।।

जश्न मने नववर्ष का, नये सजें सब साज।
नयी-नयी हों चाहतें,  नया-नया आगाज।।७।।

सबक याद कर  पूर्व के,  वरो नए संकल्प।
भर नवता नववर्ष में, चुन लो एक विकल्प।।८।।

वर्ष नया दे आपको, खुशियाँ अपरंपार।
महकें घर-आँगन सदा,   झूमे वंदनवार।।९।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 24 December 2024

टिके न झूठी शान...

क्या करना उस मित्र का, मुँह पर करता वाह।
पीछे से चुगली करे, रखता मन में  डाह।।१।।

मुश्किल आई देखकर, खींचें झट से हाथ।
रहें बनी के मित्र बस, करो न उनका साथ।।२।।

मुँह पर जो मीठा बने, छुप-छुप करता वार।
हमको ऐसे मित्र की,   नहीं तनिक दरकार।।३।।

एक पक्ष चाहे जहाँ, बस अपनी ही जीत।
स्वारथ हो हर बात में, निभे न ऐसी प्रीत।।४।।

बाहर से मीठे बनें, हैं पर अति के दुष्ट।
खुद ही खुद को भाव दे, करें अहं संतुष्ट।।५।।

जहाँ-जहाँ गाँठें पड़ें,      नीरस होता ईख।
द्वेष-गाँठ रस सोखती, लो इससे ये सीख।।६।।

बरस रही क्यों आजकल, हम पर कृपा विशेष।
ताड़ लिया मन आपका,    भीतर कितना द्वेष।।७।।

आज हमें जो बाँटते,   आँसू की सौगात।
कोई उनसे पूछता, क्या उनकी औकात।।८।।

बिलावजह बातें बना, कर कोरी बकवास।
तुच्छ चना बाजे घना, कर पर का उपहास।।९।।

सच इक कोने में खड़ा, बिलख रहा ईमान।
पौ बारह अब झूठ की, मिले उसी को मान।।१०।।

मिलकर रहता एक दिन, सच्चाई को मान।
लाख रंग-रोगन करो,   टिके न झूठी शान।।११।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से

Tuesday, 10 December 2024

शीत मगसर की...

शीत मगसर की...

जुल्म कितने ढा रही है,
शीत मगसर की।

घट रहा है मान दिन का,
घरजमाई सा।
रात बढ़ती जा रही है,
हो रही सुरसा।
बिम्ब कितने गढ़ रही है,
शीत मगसर की।

लिपट कुहरे में खड़ी है,
धूप अलसाई।
वात का लेकर तमंचा,
रात घर आई।
भाव कितने खा रही है,
शीत मगसर की।

चाँद भी सुस्ता रहा है,
ओढ़कर चादर।
झाँकता है बस कभी ही,
चोर सा छुपकर।
चीरती तन जा  रही है,
शीत मगसर की।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र.)

"भाव अरुणोदय" से



Friday, 6 December 2024

आज तुम्हें फिर देखा हमने...

आज तुम्हें फिर देखा हमने....

आज तुम्हें फिर देखा हमने,
तड़के अपने ख्वाब में।
छुप कर बैठे हो तुम जैसे,
मन के कोमल भाव में।

किस घड़ी ये जुड़ गया नाता।
तुम बिन रहा नहीं अब जाता।
कब समझे समझाने से मन,
हर पल ध्यान तुम्हारा आता।

जहाँ भी जाएँ, पाएँ तुम्हें,
निज पलकन की छाँव में।

क्यों तुम इतने अच्छे लगते।
मन के कितने  सच्चे लगते।
छल-कपट से दूर हो इतने,
भोले  जितने  बच्चे  लगते।

मरहम बनकर लग जाते हो,
जग से पाए घाव में।

तुम पर  कोई  आँच न आए।
बुरी  नजर  से  प्रभु  बचाए।
स्वस्थ रहो खुशहाल रहो तुम,
दामन सुख से भर-भर जाए।

साजे पग-पग कमल-बैठकी,
चुभे न काँटा पाँव में।

नजर  चाँद से  जब  तुम आते।
मन बिच कैरव खिल-खिल जाते।
भान वक्त  का  जरा न  रहता,
बातों  में  यूँ    घुल-मिल जाते।

यूँ ही आते-जाते रहना,
मेरे मन के गाँव में।

आज तुम्हें फिर देखा हमने...

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
"मनके मेरे मन के" से