नया-नया आगाज है, नया-नया उल्लास।
भाव-भंगिमा ले नवल, आया लो मधुमास।।१।।
ऋतु बसंत का आगमन, मादक बहे बयार।
तन-मन तंद्रिल कर रहा, मस्ती भरा खुमार।।२।।
गदराया भू का बदन, झलके मुख पर लाज।
यौवन-मद में झूमता, कामसखा ऋतुराज।।३।।
खिली कली कचनार की, दहका फूल पलास।
नव लतिकाएँ बाँचतीं, ऋत्विक नव्य हुलास।।४।।
खिली-खिली फुलवारियाँ, अलिदल की गुंजार।
चंपा-जूही-मालती, किंशुक-हरसिंगार।।५।।
अधरों पर शतदल खिले, मुख पर खिले गुलाब।
मौसम है मधुमास का, अंग-अंग पर आब।।६।।
रूप मधुर ऋतुराज का, अंग माधवी - गंध।
लेखक लेकर लेखनी, लिखते ललित निबंध।।७।।
साथी मैन बसंत का, लगा रहा मन-घात।
कोयल काली कूक कर, करे कुठाराघात।।८।।
रुत मतवाली आ गयी, साजन हैं परदेश।
प्रोषितपतिका नार का, कौन सँवारे वेश ।।९।।
चाँदी की चादर तनी, हुआ शीत का अंत।
टेसू-ढाक-पलाश ले, खेले फाग बसंत।।१०।।
अंत सभी का हो यहाँ, कुछ भी नहीं अनंत।
पतझड़ भी टिकता नहीं, रहे न सदा बसंत।।११।।
© डॉ. सीमा अग्रवाल
Wah..Wah 👏👏
ReplyDeleteThanks ❤️
ReplyDeleteBhaut khoob .shandaar srijan .
ReplyDeleteबहुत-बहुत हार्दिक आभार आपका 🙏
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