Friday, 23 February 2024

बातों-बातों में...



उपलब्धियों की पोशाक में कंगूरे-बूटे टाँकते चलिए।
कुछ सुनिए औरों की कुछ अपनी भी हाँकते चलिए।

कहते हैं- कहने से मन की, मन की परतें खुलती हैं।
बातों- बातों में यूँ गिरेबान में सबकी झाँकते चलिए।

सीखिए तजुर्बे से वृद्धों के, सीख काम बहुत आएगी।
मिलें जो निज जीवन में वे अनुभव भी बाँटते चलिए।

यूँ बड़े लोगों से मिलना एक दिन बड़ा तुम्हें बनाएगा।
हुनर और गुर सब उनके मन में सदा आँकते चलिए।

छूकर बुलंदियाँ आसमां की   अपने भी हो जाते दूर।
रह जमीं पर संग अपनों के खाई बैर की पाटते चलिए।

माघ मास की शीत त्रासद, कितने तन पर वसन नहीं।
कंबल स्वेटर साथ लिए, कँपते हाड़ को ढाँकते चलिए।

पद-चिन्हों पर चलें तुम्हारे, पंथ-अनुगामी बनें पीढ़ियाँ।
पथ प्रशस्त हो आगत का, यूँ ही धूल न फाँकते चलिए।

मंजिल तक जाने में मुमकिन है मुश्किलें हजारों आएँगी।
रोड़े-पत्थर काँटे-कंकर  आएँ जो पथ में छाँटते चलिए।

सुख-दुख मन के भाव हैं दो, चक्रवत् नित आते-जाते।
सत्कर्मों की ढाल लिए    पर्वत दुख के लाँघते चलिए।

कोई किसी से कम न ज्यादा सबकी अपनी 'सीमा' है।
दुश्मन के भी गुणों को श्रीमुख से अपने बाँचते चलिए।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
'मृगतृषा' से


2 comments:

  1. वाह वाह बहुत सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक आभार अपर्णा जी 🙏❤️

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