Sunday, 23 April 2023

पग-पग पर हैं वर्जनाएँ....


पग-पग पर हैं वर्जनाएँ….

पग-पग पर हैं वर्जनाएँ।
सूखे घन- सी गर्जनाएँ।

गति नियति की अद्भुत,
अद्भुत उसकी सर्जनाएँ।

पल भर के ही भ्रूभंग पर,
टूटतीं लौह-अर्गलाएँ।

साथिन हैं जीवन भर की,
जीवन की ये विडंबनाएँ।

जो होना है होकर रहता,
काम न आतीं अर्चनाएँ।

राहें बदलती जीवन की,
टूटती – जुड़तीं श्रंखलाएँ।

सच कैसे भी हो न पाएँ,
मन की कोरी कल्पनाएँ।

अनगिन चोटें दर्द अथाह,
मुँह बिसूरती वंचनाएँ।

स्वत्व कैसा स्वजनों का,
वक्त पर जो काम न आएँ।

कोई तो अपना हो यहाँ,
जख़्म किसे कैसे दिखाएँ।

पी ले ‘सीमा’अश्क सभी,
आँखे नाहक छलछलाएँ।

© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“चाहत चकोर की” से

Friday, 21 April 2023

कहमुकरी...

दिन भर जाने कहाँ वो जाता !
साँझ ढले घर वापस आता !
दरस को उसके दिल बेताब !
क्या सखि साजन ? ना मेहताब !

© डॉ.सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Saturday, 15 April 2023

विधना खेले खेल....

पुष्पवाण साधे कभी, साधे कभी गुलेल।

पुष्पवाण साधे कभी, साधे कभी गुलेल।
हाथों में डोरी लिए, विधना खेले खेल।।

प्रक्षालन नित कीजिए, चढ़े न मन पर मैल।
काबू में आता नहीं, अश्व अड़ा बिगड़ैल।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Friday, 14 April 2023

कृषि-पर्व वैशाखी की सभी देशवासियों को अनेकानेक शुभकामनाएँ....

कृषि पर्व वैशाखी….

अपना भारत देश है, त्यौहारों का देश।
मिलजुल खुशियाँ बाँटना, छुपा यही संदेश।।

बैशाखी कृषि-पर्व है, मन में भरे उमंग।
मस्ती में झूमें कृषक, ढोलक-ताशे संग।।

फसल खड़ी तैयार है, घर-घर बाजत ढोल।
कृषक उमंगित नाचते, आज मगन जी खोल।।

गिद्दा-भँगड़ा कर रहे, हर्षित आज किसान।
भर-भर श्रम-फल दे रहे, खड़े खेत-खलिहान।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
चित्र गूगल से साभार

Language: Hindi

काहे पलक भिगोय...

काहे पलक भिगोय ?

बात कलेजे से लगा, काहे पलक भिगोय ?
किस्मत में जो लिख गया, छीन न सकता कोय।।

मतलब के रिश्ते यहाँ, मतलब के सब मीत।
लगा न इनसे मोह मन, कर ले प्रभु से प्रीत।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Thursday, 13 April 2023

दो दोहे...

मिली पात्रता से अधिक, पचे नहीं सौगात।
कर उतनी ही कामना, हो जितनी औकात।।

सब अपने दुख में दुखी, किसे सुनाएँ हाल।
ढोना है खुद ही हमें, अपना दुख – बेताल।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

Wednesday, 12 April 2023

अजब गजब इन्सान....


अजब-गजब इन्सान…

अजब-गजब इंसान…

नहीं किसी की फिक्र इन्हें, बस
अपने सुख का ध्यान।
खान गुणों की समझें खुद को,
बाँटे सबको ज्ञान।

हाँ में हाँ जो कहता इनकी,
देते उसको भाव।
बोल सत्य के लगते तीखे,
करते उर पर घाव।
सुख-दुख अपने गाते सबसे,
दें न किसी पर कान।

भौतिक सुख के साधन ही बस,
आते इनको रास।
सीधे-सरल-शरीफों का ये,
करते नित उपहास।
हुआ नहीं अग-जग में पैदा,
इनसे बड़ा महान।

तनिक लाभ की आस लिए जो,
जाता इनके पास।
गाँठ कटाकर वो भी अपनी,
आता लौट उदास।
लिए दुकानें बैठे ऊँची,
पर फीके पकवान।

करते मुँह खुलने से पहले,
बोली सबकी बंद।
क्या कहना, कितना कहना है,
इनकी चले पसंद।
तुच्छ जताने में सबको ये,
समझें अपनी शान।

अपनी कही बात को ही ये,
पल में जाते भूल।
कोई सच समझाए यदि तो,
चुभते इनके शूल।
चूल हिलाते आते सबकी,
आता ज्यों तूफान।

जान लगा दो इनकी खातिर,
मानें कब अहसान।
वक्त पड़े पर काम न आते,
बन जाते नादान।
अपनी कमियाँ लादे सर पे,
चलते सीना तान।

देखे कितने बंदे जग में,
बड़े एक से एक।
पर हर इक खूबी का जैसे,
है इनमें अतिरेक।
उपमा इनकी दूँ मैं किससे,
मिले नहीं उपमान।

खान गुणों की समझें खुद को,
बाँटे सबको ज्ञान।
अजब-गजब इंसान !

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
” मनके मेरे मन के” से

मिलता नहीं मुकाम....

पड़ते ही बाहर कदम, जकड़े जिसे जुकाम।
कितने ही कर ले जतन,  पाता नहीं मुकाम।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

मुँह से निकली बात के....

पुण्यात्मा के हाथ भी, हो जाते हैं पाप ।

पुण्यात्मा के हाथ भी, हो जाते हैं पाप ।
प्रायश्चित का वारि तब, धोता उनकी छाप ।।

मुँह से निकली बात के, लग जाते हैं पैर ।
बात बतंगड़ गर बने, बढ़ जाते हैं बैर ।।

धन दौलत औ शोहरत, तेरी उत्कट चाह ।
पगले, तू तो चल पड़ा, बरबादी की राह ।।

फल तो उसके हाथ है, करना तेरे हाथ ।
निरासक्त हो कर्म कर, देगा वो भी साथ ।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 11 April 2023

पाला हो या गर्म हवा हो....

वृक्षों के उपकार….

वृक्षों के उपकार…

पाला हो या गर्म हवा हो,
या अँधियारी रात।
हर मुश्किल में अडिग खड़े ये,
सहते हर आघात।
विकट परिस्थिति आएँ कितनी,
मानें कभी न हार।

गुनो जरा तो मन में अपने,
वृक्षों के उपकार।
परहित में रत देव सरीखे,
लिए खड़े उपहार।
गरल कार्बन का पीकर ये,
करें जगत-उद्धार।

सुरक्षा-कवच वृक्ष हमारे,
ऑक्सीजन के स्रोत।
इनके होने से हम सबकी,
जलती जीवन-जोत।
रक्षक बन ये वैद्य सरीखे
करते हर उपचार।

चला कुदाली क्यों इन पर तुम,
लेते इनकी जान ?
मूढ़ ! यही तो देते जग को,
प्राण वायु का दान।
स्वार्थ लिप्त हो काट इन्हें क्यों,
करते खुद पर वार।

जीव-जंतु आश्रित सब इनपर
इनसे सकल जहान।
हमें-तुम्हें सबको ही मिलकर
रखना इनका ध्यान।
स्वस्थ रहें हम दम पर इनके
मिले पुष्ट आहार।

करें कृतज्ञता ज्ञापित अपनी,
ले रक्षा का भार।
बचे रहें हम, बचे रहें वन,
बचा रहे संसार।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद
“मनके मेरे मन के” से

नियत समय संचालित होते....

नियत समय संचालित होते…

नियत समय संचालित होते,
कुदरत के व्यापार।
नहीं किसी को द्वेष किसी से,
नहीं किसी से खार।

नियत सभी की सीमाएँ हैं,
नियत सभी के कर्म।
सूरज-चाँद-सितारे-नभ-सरि,
निभा रहे नित धर्म।
अस्वीकृति का कभी किसी में ,
उपजा नहीं विचार।

कुदरत से जो मिला जिसे है,
सहज उसे स्वीकार्य।
बिना स्वार्थ जगहित रत प्रकृति,
सीखो कुछ औदार्य।
थाल सजाए स्वाद अनूठे,
लिए खड़ी साकार।

कार्य जिसे जो मिला नियति से,
उसे निभाना धर्म।
काबिलियत है किसमें कितनी,
कहते उसके कर्म।
चलना पथ पर सच्चाई के,
जीत मिले या हार।

रखते हैं सब पृथक् वृत्तियाँ,
हुनर सभी में भिन्न।
नहीं और से गुण तुझमें तो,
काहे होता खिन्न ?
कौन यहाँ संपूर्ण जगत में,
किसमें नहीं विकार ?

मूर्ख ! लोभ में क्षणिक सुखों के,
मत कर पाप जघन्य।
परहित में अर्पित कर काया,
करते ज्यों पर्जन्य।
स्वार्थ कुटिल ही बैठा भीतर,
भरता तुझमें धार।

सुंदरतम कृति तू ईश्वर की,
बुद्धि ज्ञान संपन्न।
दुर्दशा कर स्वयं ही अपनी,
काहे खड़ा विपन्न ?
लौट प्रकृति की ओर मनुज, तो
माँ-सा मिले दुलार।

© डॉ. सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“अंतर्मन के भाव” से

Monday, 10 April 2023

उठो जागो बढ़े चलो बंधु....

उठो, जागो, बढ़े चलो बंधु…( स्वामी विवेकानंद की जयंती पर उनके दिए गए उत्प्रेरक मंत्र से प्रेरित होकर लिखा गया मेरा स्वरचित गीत)

उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु…

उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

सपने सतरंगी आगत के,
सजें तुम्हारी आँखों में।
जज्बा जोश लगन सब मिलकर,
भर दें उड़ान पाँखों में।

रखकर गंतव्य निगाहों में,
अर्जुन सम तीर चलाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

तुम युवक ही रीढ़ समाज की,
टिका है भविष्य तुम्हीं पर।
तुम्हीं देश के कर्णधार हो,
नजरें सभी की तुम्हीं पर।

निज ऊर्जा, महत्वाकांक्षा से
ऊँचा तुम इसे उठाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

मंजिल चूमे कदम तुम्हारे,
भरी हो खुशी से झोली।
देख तुम्हारे करतब न्यारे,
नाचें झूमें हमजोली।

देश तरक्की करे चहुँमुखी,
अग जग में मान बढ़ाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

कुदरत के लघु अवयव को भी,
क्षति न कभी तुम पहुँचाना।
पूज चरण पीपल-बरगद के,
बैठ छाँह में सुस्ताना।

दीन-हीन निरीह जीवों को,
जीवन की आस बँधाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

असामाजिक तत्व समाज के
खड़े राह को रोकें तो,
डाह भरे निज सम्बन्धी भी
छुरा पीठ में भोंकें तो,

करके नजरंदाज सभी को
पथ अपना सुगम बनाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

– ©® डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
साझा काव्य संग्रह ” वेदांत ” में प्रकाशित

कौन सोचता बोलो तुम ही....

कौन सोचता बोलो तुम ही…

कौन सोचता बोलो तुम ही, दुखिया की लाचारी पर ?
पढ़ो पोथियाँ भरी पड़ी हैं, भारत की सन्नारी पर।

देश हुआ आजाद मगर क्या, खुशहाली सब तक आयी ?
मिल जाएगी गली-गली में, क्या कहना बेकारी पर।

कल कितना चहका करती थी, आज न कोई नीड़ रहा।
जाने किसकी नजर लगी है, उस हँसती फुलवारी पर।

धन-कुबेर गड्डी नोटों की, फूँकें आतिशबाजी पर।
बच्चे निर्धन के घर देखो, टूट रहे तरकारी पर।

स्वार्थ-ग्रसित हो रिश्वत खाकर, न्याय गलत जो करता है।
ठोको दावा मिलकर सारे, ऊँचे उस अधिकारी पर।

बनना कुछ तो आज अभी से, खून-पसीना एक करो।
लक्ष्य न हासिल कर पाओगे, इस छिटपुट तैयारी पर।

रहें काम सधने तक अपने, फिर इनको परवाह नहीं।
स्वार्थ जनित सब रिश्ते-नाते, थू इस दुनियादारी पर।

जिस थाली में करते भोजन, छेद उसी में करते हैं।
रहें यहाँ पर गाएँ पर की, लानत इस गद्दारी पर।

वृद्धाश्रम में छोड़ गया सुत, चिंता फिर भी करती है।
सतत मनाती कुशल पुत्र की, सदके उस महतारी पर।

अमृत महोत्सव मना रहे हम, उत्सव रचकर गली-गली
गुजरी सदी तीन-चौथाई, यूँ ही मारामारी पर।

किस्मत देती आई गच्चा, अब क्या आस लगानी है।
अब तो वक्त कटे ‘सीमा’ का, अंत-सफर तैयारी पर।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“सृजन संगम” से

Friday, 7 April 2023

कुछ दोहे विश्व स्वास्थ्य दिवस पर....

उठ जाग अब भोर हुई, कर ले बेटा योग।
तन-मन दोनों स्वस्थ हों, छुए न कोई रोग।।

सुस्ती औ आलस्य से, लगते कितने रोग।
खाली बिस्तर खूँदते, लगें न तन को भोग।।

स्वास्थ्य दिवस पर आज तुम, लो यह मन में मान।
योग बिना हर भोग है, खुद से बैर समान।।

रोज सुबह वर्जिश करो, पीछे बाकी काम।
विकार मन के सब हरे, तन को दे आराम।।

आलस तंद्रा तज मना, कर ले रे उद्योग।
घेरेंगे वरना तुझे, आकर अनगिन रोग।।

– © सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

आँसू की भरमार....

बड़ा असंगत आजकल, जीवन का व्यापार।
टोटा  है  मुस्कान  का,   आँसू  की  भरमार।।

सुख की सब जेबें फटीं, भरा गमों से कोष।
कमी हमारे भाग्य की, नहीं किसी का दोष।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

Wednesday, 5 April 2023

यही है पाठ संयम का...

रखे हों पास में लड्डू, न ललचाए मगर रसना।
भले ही लार टपके पर, नहीं इक कौर भी चखना।
यही है पाठ संयम का, सदा कसना कसौटी पर
नियंत्रण में परम सुख है, हमेशा ध्यान तुम रखना।
© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

ऐसा पावन नेह...

सुरसरि सा निर्मल बहे, रच ले मन में गेह।
नहीं सुलभ संसार में,     ऐसा पावन नेह।।
- © डॉ. सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

Tuesday, 4 April 2023

ले अब पूर्ण विराम...

कितने कोमे जिंदगी ! ले अब पूर्ण विराम।
एक पाँव अनथक चली, पा लूँ कुछ आराम।।
© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

आसमां पर घर बनाया है किसी ने....

आसमां पर घर बनाया है किसी ने।
चाँद को फिर घर बुलाया है किसी ने।
भावना के द्वार जो गुमसुम खड़ा था,
गीत वो फिर गुनगुनाया है किसी ने।
- © सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद
"मनके मेरे मन के" से

Sunday, 2 April 2023

क्या ले जाना साथ...

पाया ऊँचा ओहदा, रही निम्न क्यों सोच ?
लेते क्यों हर काम में, तुम भारी उत्कोच ?।।

कौन कमी तुम पर कहो, क्यों फैलाते हाथ ?
काहे जोड़-बटोर ये,     क्या ले जाना साथ ?

फूँक-फूँक रक्खो कदम, काम करो ना नीच।
श्वेतवसन में आपके,       लग ना जाए कीच।।

सदुपयोग बल का करो,   रोको भ्रष्टाचार।
काम करोगे नेक तो, होगी जय जय कार।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद