Wednesday 30 June 2021

निर्मम, क्यूँ ऐसे ठुकराया....

निर्मम ! क्यूँ ऐसे ठुकराया...

निर्मम ! क्यूँ ऐसे ठुकराया
जरा भी मुझपे तरस न आया

खड़ी रही मैं द्वार तुम्हारे
निर्मल स्नेह- डोर सहारे
थक गयी आस,  दरस न पाया

पलक-पाँवड़े बिछाए मैंने
आरती- दीप  सजाए मैंने
जलद नेह का,  बरस न पाया

कितने फागुन बीते यूँ ही
कितने सावन  रीते यूँ ही
हाय! मिलन का, बरस न आया

कितने तूने  गले  लगाए
छूकर पारस खूब बनाए
खड़ी  दूर   मैं,   परस  न  पाया

निर्मम ! क्यूँ ऐसे ठुकराया....

- डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

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