Tuesday 8 June 2021

स्वरचित दोहे...

दोहे....

सावन आया देखकर, हर्षित दादुर मोर।
चंदा बदली में छुपा,   रोता फिरे चकोर।।१।।

अबके सावन करो प्रभु, करुणा की बरसात।
शाख  ना  टूटे  कोई,   हुलसें  घर-घर  पात।।२।।

सब जन विकार मुक्त हों, धुल जाएँ सब पाप।
बह जाए ये वायरस,      मिट जाएँ भव-ताप।।३।।

मेघ बरसते देखकर,       मन में उगा विचार।
जग के सब कल्मष बहें, रहे न लेश विकार।।४।।

हर ले मलिनता सारी,    बारिश की बौछार।
मन-गंगा निर्मल बहे,      तर जाएँ नर-नार।।५।।

महामारी में लिपटी,  देख धरा लाचार।
रोए गगन भी देखो,  आँसू नौ-नौ धार।।6।।

जिस अदने वायरस ने,    छीने होश-हवास।
अबकी बारिश जल मरे, जैसे आक-जवास।।७।।

वर्षा जीवन-दायिनी,      तप्त धरा की आस।
सकल चराचर जगत की, यही बुझाए प्यास।।८।।

पानी बिन जीवन नहीं, वर्षा जल की खान।
बूँद-बूँद  संग्रह करो, इसका   अमृत  जान।।९।।

-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

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