दोहे....
सावन आया देखकर, हर्षित दादुर मोर।
चंदा बदली में छुपा, रोता फिरे चकोर।।१।।
अबके सावन करो प्रभु, करुणा की बरसात।
शाख ना टूटे कोई, हुलसें घर-घर पात।।२।।
सब जन विकार मुक्त हों, धुल जाएँ सब पाप।
बह जाए ये वायरस, मिट जाएँ भव-ताप।।३।।
मेघ बरसते देखकर, मन में उगा विचार।
जग के सब कल्मष बहें, रहे न लेश विकार।।४।।
हर ले मलिनता सारी, बारिश की बौछार।
मन-गंगा निर्मल बहे, तर जाएँ नर-नार।।५।।
महामारी में लिपटी, देख धरा लाचार।
रोए गगन भी देखो, आँसू नौ-नौ धार।।6।।
जिस अदने वायरस ने, छीने होश-हवास।
अबकी बारिश जल मरे, जैसे आक-जवास।।७।।
वर्षा जीवन-दायिनी, तप्त धरा की आस।
सकल चराचर जगत की, यही बुझाए प्यास।।८।।
पानी बिन जीवन नहीं, वर्षा जल की खान।
बूँद-बूँद संग्रह करो, इसका अमृत जान।।९।।
-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
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