Friday 21 August 2020

कब सोचा था...

कब सोचा था....

सोचा था तुझसे ब्याह करूँगी
प्यार  तुझे   बेपनाह   करूँगी

साँझ  ढले  जब   घर आएगा
निहारा  तेरी    राह    करूँगी

तेरी  लंबी  उमर  की  खातिर
उपवास इक हर माह करूँगी

पूरा न  जिसको   कर पाये तू
कोई  न  ऐसी   चाह   करूँगी

रहूँगी  तले  पलकों   के  तेरी
कभी न ऊँची निगाह करूँगी

मरते दम तक   साथ  तेरे  ही
जीवन अपना निबाह करूँगी

तुझसे जुदा होकर  जीने  का
सोचा कब था  गुनाह करूँगी

कब   सोचा था  याद में  तेरी
रातें  अपनी   स्याह   करूँगी

साथ  तेरे  जो   बुने  चाव  से 
उन  सपनों का  दाह  करूँगी

              ---सीमा---

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