कितना सच अनजाना तुमसे
कितना कुछ अनकहा
क्या करना कुछ कहकर अब
रहने दो जो नहीं कहा
कौन सुखी है इस दुनिया में
जो दर्द मैं अपना रोऊँ
बना लूँ दर्द को साथी अपना
सुकून से संग ले सोऊँ
बन्दिशों में रहते-रहते
बन्धनों का आदी हुआ मन
अब क्या करनी मन की अपने
मन ही न जब अपना रहा
सबकी अपनी मर्यादाएँ हैं,
सबकी अपनी नियति है
मरे बिना स्वर्ग न मिलता
मिलती किसको सुगति है
जमावड़ा गमों का दिल में
बन गयी पीर हिमालय
गहराता समंदर अश्कों का
बहने दो जो नहीं बहा
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
No comments:
Post a Comment