Friday 18 January 2019

नारी विषय पर आधारित काव्य संग्रह 'नारी:एक आवाज' में प्रकाशित मेरी तीन रचनाएँ ---

१- नारी जगत-आधार ----(दोहे)

बिन नारी जीवन नहीं, समझो ए, श्रीमान।
शक्ति स्वरूपा कामिनी, सदा करो सम्मान।।

सारे जग में हो रहा, माता का गुणगान।
घर-घर में नारी सहे, कदम-कदम अपमान।।

वृत्ति आसुरी त्याग दो, बनो मनुष्य महान।
नारी का आदर करो, पाओ खुद भी मान।।

पीछे कहाँ अब नारी, गढ़ती नव प्रतिमान।
बना रही हर क्षेत्र में, नित नूतन पहचान।।

अब नारी के रूप में, हुआ बहुत बदलाव।
हर क्षण आगे बढ़ रही, पाँव नहीं ठहराव।।

नारी बहुत सशक्त है, दीन- हीन ना जान।
सकल सृष्टि की जननी, शक्ति-पुंज महान।।

बस प्रकृति ही एक है, नारी का उपमान।
जननी होकर भी सदा, पाती है अपमान।।

नारी नर की जननी, नारी जगत- आधार।
ये सृष्टि क्या सृष्टा भी, नारी बिन निरधार।।

नर की यह सहधर्मिणी, क्योंकर सहे अन्याय।
है समान अधिकारिणी, सुलभ इसे हो न्याय।।

- स्वरचित रचना
डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

२- अबला नहीं अब नारियाँ ---

अबला नहीं अब नारियाँ
सबला समर्थ हुईं नारियाँ

भर हुंकार गर्जना करतीं
शक्ति- समन्वित नारियाँ

भरतीं नित  ऊँची उड़ान
करतीं जी तोड़ तैयारियाँ

खड़ी हुईं  पैरों पर अपने
सुनेंगी ना अब 'बेचारियाँ'

हर क्षेत्र में बढ़ कर आगे
निभाती हैं जिम्मेदारियाँ

भीतर रह चारदीवारी के
घुटेंगी नहीं सिसकारियाँ

राह में आने वाली सारी
मेटेंगी चुन-चुन दुश्वारियाँ

सृष्टि की सुंदर बगिया की
हैं ये सुरभित फुलवारियाँ

नर, होगा सूना आँगन तेरा
घोट न नन्हीं किलकारियाँ

आई बारी अब नारियों की
तूने खेल बहुत लीं पारियाँ

अस्तित्व के प्रश्न पर 'सीमा'
धरी रह जातीं सब यारियाँ

- स्वरचित रचना
डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

३- बदल रहा समाज है ---

बदल रहा समाज है
बदल रहा रिवाज है

कल तक जो सही था
प्रश्नगत वह आज है

दबी जुबां में ही सही
उठने लगी आवाज है

नारी आज मुक्त हो
भर रही परबाज़ है

बेटी पढ़े, आगे बढ़े
वक्त का आगाज़ है

सफल है हर क्षेत्र में
कर रही हर काज है

बेटी पर आज हमें
बेटोें सा ही नाज है

लिंगभेद समाप्त हो
इसमें कैसी लाज है

जिस घर में बेटी नहीं
सूना हर सुख साज है

- स्वरचित रचना
डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)








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