रो-रोकर बीती रात
मेरा चाँद न आया
होने लगी लो प्रात
मेरा चाँद न आया
ख्वाब जो मन ने बुने
रह गए सभी अनसुने
रही मन में मन की बात
मेरा चाँद न आया
घिर-घिर आए बदरा
बह-बह जाए कजरा
हुई घनन-घनन बरसात
मेरा चाँद न आया
किस्मत ने किया उत्पात
बेबात बिगड़ी बात
बिन शह के खाई मात
मेरा चाँद न आया
कितनी मैंने टेर लगाई
फिर भी उसने देर लगाई
विलखते रहे जज्बात
मेरा चाँद न आया
आहट जो जरा सी पाई
मन में बजने लगी शहनाई
मगर था वो झंझावात
मेरा चाँद न आया
बुझ गयी आखिरी आस
रहा न कोई उल्लास
मुरझाया मन-जलजात
मेरा चाँद न आया
होने लगी लो प्रात
मेरा चाँद न आया
-सीमा
20/10/15
No comments:
Post a Comment