Monday 19 March 2018

हुईं आज से हम- तुम समधन...

पाया हम दोनों ने ही सम धन
हुईं आज से हम-तुम समधन
मैंने तुमसे और तुमने मुझ से
पाया न रत्तीभर भी कम धन

'सभ्या' मिसाल है सभ्यता की
मूरत ये प्यारी-सी भव्यता की
खुशी मन की पूछो मत मुझसे
निहाल हुई मैं पाकर  बहू-धन

विशालमना 'आकाश' तुम्हारा
संग तुम्हारे बसे संसार हमारा
बढ़े ये संपदा रिश्ते- नातों की
मूल ब्याज संग बने मिश्र धन

सबकी नजर से बचा-बचाकर
रक्खी कबसे दिल में छुपाकर
जुड़ी सपनों की मेरे पाई-पाई
बनी है आज मेरा जीवन-धन

रोपी थी मैंने इक आस मन में
पनपती रही वो मन ही मन में
सुवासित आज अंतर्मन सारा
होकर द्विगुणित मिला मूलधन

कितने परिवार मिल रहे आज
अनजाने दिल खिल रहे आज
फूले-फले अब सदा ये बगिया
नित-नित ही होता रहे संवर्धन

- सीमा अग्रवाल
१७.०२.२०१८

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