अब तक तो भ्रम में जीता था
पर अब ये दिल ने जाना है
दौड़ रहा जिस सुख के पीछे
वो अपना कहाँ बेगाना है !
मोहक उसने जाल बिछाया
कैसा सुंदर ख्वाब दिखाया
जब आँख खुली तो मैंने पाया
हर सूं पसरा वीराना है !
समझ न थी नादां दिल को
छूने चला ऊँची मंजिल को
मूंदता रहा सच से आँखें
हुआ कैसा ये दीवाना है !
मुद्दत हुई जब मिलीं थीं खुशियाँ
अब तो मिलती इक झलक नहीं
मेहमां दूर का हो गयी निंदिया
पल भर भी लगती पलक नहीं
लगा रहता इस तन्हा दिल में
बस गम का आना- जाना है !
कभी खेले थे साथ हमारे
खूब गगन के चाँद सितारे
आगोश में अपने लेने को
खड़ी थीं बहारें बाँह पसारे
आज सभी ने किया किनारा
सब किस्मत का फसाना है !
कैसे सुनाऊँ अपनी कहानी
सुख से सदा रही अनजानी
सावन- सा बन लुटाया जीवन
जग ने फिर भी कदर ना जानी
खुशियों का नकाब पहने
अश्कों का ताना- बाना है !
दौड़ रहा मन जिसके पीछे
वो अपना कहाँ बेगाना है !
- सीमा अग्रवाल
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