Sunday, 22 November 2015

अब वो बात कहाँ---

अब रही वो पहले सी बात कहाँ
वो सुहाने दिन, मादक रात कहाँ
प्यासा ही तरसता रह जाता मन
प्यार की होती अब बरसात कहाँ

Thursday, 19 November 2015

मैं खुद रोशन हो जाऊंगी

रोशनी पाकर सूरज से
ज्यों गगन में चाँद चमकता
जब तुम चमकोगे जग में
मैं खुद रोशन हो जाऊंगी ।

साँझ घिरे तो छुपा लूंगी
प्यार से तुम्हें आँचल में अपने
भोर होते ही मिटा खुद को
तुम में ओझल हो जाऊंगी

- सीमा

Tuesday, 10 November 2015

वो अपना कहाँ बेगाना है ---

अब तक तो भ्रम में जीता था
पर अब ये दिल ने जाना है
दौड़ रहा जिस सुख के पीछे
वो अपना कहाँ बेगाना है !

मोहक उसने जाल बिछाया
कैसा सुंदर ख्वाब दिखाया
जब आँख खुली तो मैंने पाया
हर सूं पसरा वीराना है !

समझ न थी नादां दिल को
छूने चला ऊँची मंजिल को
मूंदता रहा सच से आँखें
हुआ कैसा ये दीवाना है !

मुद्दत हुई जब मिलीं थीं खुशियाँ
अब तो मिलती इक झलक नहीं
मेहमां दूर का हो गयी निंदिया
पल भर भी लगती पलक नहीं
लगा रहता इस तन्हा दिल में
बस गम का आना- जाना है !

कभी खेले थे साथ हमारे
खूब गगन के चाँद सितारे
आगोश में अपने लेने को
खड़ी थीं बहारें बाँह पसारे
आज सभी ने किया किनारा
सब किस्मत का फसाना है !

कैसे सुनाऊँ अपनी कहानी
सुख से सदा रही अनजानी
सावन- सा बन लुटाया जीवन
जग ने फिर भी कदर ना जानी
खुशियों का नकाब पहने
अश्कों का ताना- बाना है !

दौड़ रहा मन जिसके पीछे
वो अपना कहाँ बेगाना है !

- सीमा अग्रवाल

Thursday, 5 November 2015

ए मेरे निष्ठुर भाग्य विधाता !

हँसी न आने दी अधरों पर,
अश्कों पर भी रोक लगा दी !
ए मेरे निष्ठुर भाग्य-विधाता,
मुझे तुमने ये कैसी सज़ा दी !

कैसे इठलाते फिरते थे
रोके न किसी के रुकते थे
दिल में मचलते अरमानों की
अर्थी ही हाय ! उठा दी !

अंधड़ आया, बादल गरजे,
और टूटकर बरसा पानी !
नन्हें, नाजुक सपनों की,
सबने मिल हस्ती मिटा दी !

कितने प्यारे दिन थे आए
मन ने अनगिन ख्वाब सजाए
कान भरे किस्मत के किस ने
उसने लिखी हर खुशी मिटा दी !

प्यार ही तो माँगा था अपना
दौलत तो कभी ना माँगी थी
क्यूँ अनचाहा देकर मुझको
अनजानी सी राह दिखा दी !

चैन आए अब कैसे दिल को
कैसे आँखों में निंदिया आए
मसलकर मेरे सुख की कलियाँ
क्यों काँटों की सेज बिछा दी !

क्यूँ आए अब हँसी लबों पर
क्यूँ मन ये झूमे, नाचे, गाऐ
सुला कर मेरी किस्मत तुमने
सोई हुई हर पीर जगा दी !

स्नेह-सागर यूँ तो छलक रहा
पर पहुँच ना उस तक कोई मेरी
बुझ ना सकेगी जो जनम- जनम
क्यों मन में ऐसी प्यास जगा दी !

               ---सीमा अग्रवाल---