तुलसीदास जी द्वारा रचित पद "अब लौं नसानी अब ना नसैहौं" का भावानुवाद---
अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा !
जाग गया हूँ राम-कृपा से, फिर बिस्तर नहीं लगाऊंगा !
हर चिंता को हरने वाली, राम- नाम की मणि मनोहर
सदा ह्रदय में बास करेगी, बनकर उनकी अचल धरोहर
राम-नाम-सेतु पर चढ़कर, भव- सागर तर जाऊंगा ।
अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।
अपने वश में जान ये इन्द्रियाँ,खूब हँसी हैं मुझ पर
आज इन्हें काबू में करके, लगाम कसूंगा मैं इन पर
राम-नाम से चलेगा शासन, ऐन्द्रिक- राज हटाऊंगा ।
अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।
झूठे रस के लोभ में कितना, मन का भौंरा भटका है
जब-जब इसने चोंच बढ़ाई, तब-तब काँटों में अटका है
राम-रसायन पीने अब, चरणकमलों में इसे बसाऊंगा ।
अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।
जाग गया हूँ राम-कृपा से, फिर बिस्तर नहीं लगाऊंगा ।
--- डॉ0 सीमा अग्रवाल ---
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