हो स्वार्थ ग्रसित सीने में प्रकृति के,नित खंजर तूने भोंके हैं । पग- पग चेतावनी देकर उसने, पग बढ़ने से तेरे रोके हैं । नामुमकिन है कुदरत को तेरा, वश में यूँ अपने कर पाना, सँभल जा मानव, ये ख्वाब विजय के तेरी आँखों के धोखे हैं ।
--- सीमा---
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