अभी तो कितना गम खाया है !
फिर भी तुम कहते कम खाया है !
चाहा था जिसे रब से भी ज्यादा
दिल पे उसी ने कहर ढाया है !
जिसके लिए भुला बैठे खुद को
पल- पल उसने हमें ताया है ।
टूट गया अब बाँध सब्र का
आँख से आँसू ढुलक आया है !
पर मुमकिन नहीं है उसे भुलाना
इतना इस दिल को वो भाया है !
जी उठेंगी देख उसे ये अँखियाँ
कोई कह दे लौट वो फिर आया है !
कोई पूछे उससे क्यों रूठ गया वो
जो खुद ही चलके इधर आया है ।
ओ,नफरत करने वाले ! सुन ले
हमें तुझपे बला का प्यार आया है !
अब उजाला ज्यादा दूर नहीं,
अँधियारा इतना घिर आया है !
छंटने लगे अब गम के बादल,
लौट के घर हमदम आया है !
अब रहे न कोई हसरत बाकी,
प्यार भरा मौसम आया है !
देख लिया जब जी भर उनको,
आँखों में मेरी दम आया है !
उस बिन तेरा वजूद न'सीमा,'
कोई गैर नहीं वो हमसाया है !
-सीमा अग्रवाल
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