वक्त ले आया काँ से काँ तक डराती है अब अपनी छाँ तक कैसे यकीं आए नातों पर, बदल गए सब सर से पाँ तक ।
नजर घुमाऊँ जब याँ से वाँ तक देख नजारा डर जाती जाँ तक किसी और पे क्या यकीं करें अब, बदल गयी जब अपनी माँ तक ।
-सीमा अग्रवाल
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