Wednesday, 30 June 2021

निर्मम, क्यूँ ऐसे ठुकराया....

निर्मम ! क्यूँ ऐसे ठुकराया...

निर्मम ! क्यूँ ऐसे ठुकराया
जरा भी मुझपे तरस न आया

खड़ी रही मैं द्वार तुम्हारे
निर्मल स्नेह- डोर सहारे
थक गयी आस,  दरस न पाया

पलक-पाँवड़े बिछाए मैंने
आरती- दीप  सजाए मैंने
जलद नेह का,  बरस न पाया

कितने फागुन बीते यूँ ही
कितने सावन  रीते यूँ ही
हाय! मिलन का, बरस न आया

कितने तूने  गले  लगाए
छूकर पारस खूब बनाए
खड़ी  दूर   मैं,   परस  न  पाया

निर्मम ! क्यूँ ऐसे ठुकराया....

- डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Friday, 25 June 2021

खींच मत अपनी ओर ...

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खींच मत अपनी ओर अतीत
साथ हमारा  गया  अब  बीत

माना  तू  सुहाना  बहुत  है
पर अब मुझसे दूर बहुत है
आकर्षण में  बँध  मैं आती
दिखता तुझमें  नूर बहुत है
          गुजरी तेरे  साथ  मौज  से  
          जिंदगी हसीं गयी वो बीत
खींच मत ....
तेरा - मेरा      नाता     टूटा
मैं   आगे   तू   पीछे   छूटा
वर्तमान से  मिल कर रहना
उसकी हाँ में हाँ अब कहना
         दुनिया चले  वक्त की शै पर
         वक्त से कोई  सका न जीत
खींच मत ....
काश ! कभी  पीछे आ पाती
ख्वाब  सभी  पूरे  कर जाती
हड़बड़ी  में   हाथ   से   छूटी
खुशी  साथ  अपने ले जाती
         गीत मेरे सुर - ताल  पे  तेरी  
         रचते  मिल  मधुमय  संगीत
खींच मत ....
वे दिन  भी क्या  सुंदर  दिन थे
ख्वाब नयन में तब अनगिन थे
गमों का था  न पता - ठिकाना
कितने मौज भरे  पल-छिन थे
       भूली  नहीं  आज भी  दिन वो
       मिला था जब मुझको मनमीत
खींच मत ....
भरसक तूने   साथ   निभाया
पर किस्मत को रास न आया
आज उदासी  के  आलम  में
याद  तुझे  कर  जीवन  पाया
             यूँ ही निज कोटर में साथी
             रखना  छुपाए   मेरी  प्रीत
खींच मत अपनी ओर.....
©-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
"मनके मेरे मन के" से

Wednesday, 23 June 2021

मनहरण घनाक्षरी....

पड़ी वक्त की लताड़, जिंदगी हुई उजाड़,
आस-प्यास सब मिटी, चाह दुखदायी है।

हाय ये कैसी बेबसी, माँ- बहन चल बसी,
रिश्तों को यूँ खोते जाना, घोर कष्टदायी है।

दोस्त भी कुछ खो दिए, दूर ही बैठे रो दिए,
दूरियाँ-मजबूरियाँ, क्या-क्या संग लायी है।

लपलपाती जीभ ले, अदृश्य कालदण्ड ले,
कालिका-सी किलकती, महामारी आयी है।

-© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Saturday, 19 June 2021

रात बदरिया घिर-घिर आए...

रात  बदरिया  घिर - घिर  आए
पास  न   कोई   दिल   घबराए

बागी  हुआ     निगोड़ा  मौसम
आ  धमकाए    लाज  न  आए

उफ   कैसी   मनहूस   घड़ी  है
बात - बात  पर  जी  अकुलाए

बेढब   चालें     चलती   दुनिया
बिना  बात   ही     बात  बनाए

बुझी - बुझी   सी   लगे  चाँदनी
करके   इंगित     पास    बुलाए 

किस  गम   में    डूबा   है  चंदा
फिर-फिर आए  फिर-फिर जाए

विरह - भुजंगम     टले  न  टाले
बैठा    भीतर       घात    लगाए

बैन   रुँधे   हैं    नैन    पिपासित
रैन  न  जाए         चैन  न  आए

क्या - क्या  और    देखना बाकी
'सीमा' गम की        कौन बताए

- सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
"मनके मेरे मन के" से

Tuesday, 15 June 2021

तुम ना आए....

तुम ना आए...√

उग आया लो चाँद गगन में
तुम ना आए
खोई  तुममें  रही  मगन  मैं
तुम ना आए

याद करो  तुम ही कहते थे
साँझ ढले  घर आ जाऊँगा
निकलेगा जब  चाँद गली में
मैं तुमसे मिलने आऊँगा
            लो, आया वो चाँद गली में
            तुम ना आए....

बिना तुम्हारे गम सहकर भी
हमने जग  के  फर्ज  निभाए
अवधि गिन-गिन जिए रहे हम
जीवन के सब कर्ज चुकाए
        देखा तुमको चाँद - झलक में
        तुम ना आए....

बड़ी खुशी से संग सखी के
हमने  सब  सिंगार  सजाए
वेणी  गूँथी    माँग   सजाई
जड़े  सितारे     हार  बनाए
        उलझ गया लो चाँद अलक में
        तुम ना आए....

गुजरीं   कितनी  पूरनमासी
कितनी घोर अमावस आयीं
शिशिर-हेमंत-बसंत-पतझर
षड्ऋतु आतप-पावस छायीं
        आँसू  आ-आ रुके पलक में
        तुम ना आए
        डूब गया लो  चाँद फलक में
        तुम ना आए....
-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
https://hindi.sahityapedia.com/user/seema0806

Tuesday, 8 June 2021

स्वरचित दोहे...

दोहे....

सावन आया देखकर, हर्षित दादुर मोर।
चंदा बदली में छुपा,   रोता फिरे चकोर।।१।।

अबके सावन करो प्रभु, करुणा की बरसात।
शाख  ना  टूटे  कोई,   हुलसें  घर-घर  पात।।२।।

सब जन विकार मुक्त हों, धुल जाएँ सब पाप।
बह जाए ये वायरस,      मिट जाएँ भव-ताप।।३।।

मेघ बरसते देखकर,       मन में उगा विचार।
जग के सब कल्मष बहें, रहे न लेश विकार।।४।।

हर ले मलिनता सारी,    बारिश की बौछार।
मन-गंगा निर्मल बहे,      तर जाएँ नर-नार।।५।।

महामारी में लिपटी,  देख धरा लाचार।
रोए गगन भी देखो,  आँसू नौ-नौ धार।।6।।

जिस अदने वायरस ने,    छीने होश-हवास।
अबकी बारिश जल मरे, जैसे आक-जवास।।७।।

वर्षा जीवन-दायिनी,      तप्त धरा की आस।
सकल चराचर जगत की, यही बुझाए प्यास।।८।।

पानी बिन जीवन नहीं, वर्षा जल की खान।
बूँद-बूँद  संग्रह करो, इसका   अमृत  जान।।९।।

-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Saturday, 5 June 2021

आज तुम्हें फिर देखा हमने...

आज तुम्हें फिर देखा हमने...

आज तुम्हें फिर देखा हमने
तड़के अपने ख्वाब में
छुप कर बैठे हो तुम जैसे
मन के कोमल भाव में

किस घड़ी ये जुड़ गया नाता
तुम बिन रहा नहीं अब जाता
कब समझे समझाने से मन
हर पल ध्यान तुम्हारा आता

जहाँ भी जाएँ पाएँ तुम्हें
निज पलकन की छाँव में

क्यों तुम इतने अच्छे लगते
मन के कितने  सच्चे लगते
छल-कपट से दूर हो इतने
भोले  जितने  बच्चे  लगते

मरहम बनकर लग जाते हो
जग से पाए घाव में

तुम पर  कोई  आँच न आए
बुरी  नजर  से  प्रभु  बचाए
स्वस्थ रहो खुशहाल रहो तुम
दामन सुख से भर-भर जाए

यूँ ही आते-जाते रहना
मेरे मन के गाँव में...

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद