Wednesday 5 February 2020

मन अनुरागी श्याम तुम्हारा...

१- मन अनुरागी श्याम तुम्हारा... मन अनुरागी श्याम तुम्हारा मेरे भटकते मन- प्राणों का, तुम ही एक सहारा साँवरे रूप में डूब तुम्हारे, निखरा रंग हमारा मन-मंदिर के वासी तुमसे, प्रतिबिंबित जग सारा तब-तब ठोकर खाई मैंने, जब-जब तुम्हें बिसारा कितने अधम जनों को तुमने, एक पुकार पर तारा लेने को मेरी प्रेम-परीक्षा, माया का मोहक जाल पसारा भव-बंधन से मुक्त करो अब, तोड़ ये निर्मम कारा । २ संग अंधेरों के मैं खेली... संग अंधेरों के मैं खेली रात है मेरी सखी सहेली प्यार से अपने अंक लगाती रहने न देती मुझे अकेली चाँद-सितारे उतर के नभ से संग मेरे करते अठखेली हँसें मंद-मंद चाँद-चाँदनी लगे मन नीकी रात जुनेली पग धर धरा पर धीरे-धीरे चलती सँभलकर नार नवेली जिंदगी जो आसान कभी थी लगती वही अब गूढ़ पहेली जिन सपनों पे लुटाया जीवन उन सपनों ने जान ही ले ली रहे न हास-हुलास-रास-रंग सूनी है अब दिल की हवेली नेह का सागर जहाँ छलकता हमने वहाँ भी जिल्लत झेली कोई किसी से बड़ा न छोटा राजा भोज या गंगू तेली खुशियाँ हाट मिलें नहीं 'सीमा' धरे रह जाते रुपया- धेली - डॉ.सीमा अग्रवाल सी-89, जिगर कॉलोनी मुरादाबाद (उ.प्र.)

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