उमड़ रहा पारावार खुशी का फिर क्यों हैं ये खामोशियाँ लब हों भले ही शांत, ठिठके नजरें तोड़ रहीं खामोशियाँ लगी है देखो आग फाग की गुनगुनाओ कि कोई राग सजे मुसकुरा रहे तुम जो मंद- मंद गढ़ रहीं भाषा नई खामोशियाँ - सीमा
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