आँखों में देखो अश्क भरे हैं
हुए आज फिर जख्म हरे हैं !
रह गए बस ठूँठ गमों के
सुख के तो सारे पात झरे हैं !
गुमसुम-गुमसुम खोए-खोए
अरमां सहमे-सहमे डरे-डरे हैं !
चलूँ मैं तनकर बोलो कैसे !
दिल पर जब इतने बोझ धरे हैं !
पहन ले सीमा मुस्कान- मुखौटा
तेरे दुख तो ये टारे नहीं टरे हैं !
- सीमा
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