विरह की देखो तोप दगी है
दिल में बादल के चोट लगी है !
नेत्रमय बन गया तन सारा
अश्कों की कैसी झड़ी लगी है !
अंबर से धरती तक आकर
ढूँढ रहा है अपना साजन
कण-कण से वो पूछ रहा है
छुपा कहाँ मेरा मनभावन !
बिजली चमकी दिल में गोया
आशा की एक किरण जगी है !
रोके नहीं रुकते हैं आँसू
गला ये रुँध रुँध जाता है
दिल से उमड़ व्यथा का सागर
जग को हरा कर जाता है
सुख देगी यह दुख की सीमा
कोरी नहीं ये दिल की लगी है !
आओ बदरा ! मेरे भाई
मुझपे भी ये विपदा आई
मैं भी तुम-सी गम की मारी
छोड़ चला मुझको हरजाई
है तेरी मेरी एक कहानी
निष्ठुर प्रिय के प्रेम पगी है !
रखो व्यथा को दिल में छुपाकर
अग-जग में यूँ न करो उजागर
फिर क्या रहेगा पास तुम्हारे
अश्कों की सारी पूंजी गंवाकर
कभी ये तुम्हारा साथ न देगी
दुनिया किसी की नहीं सगी है !
-सीमा अग्रवाल
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