Sunday, 23 November 2025

सफ़र जिंदगी का...

सफर जिंदगी का सरल अब कहाँ है !
सुकूं वो दिलों में रहा अब कहाँ है !

बदल सा रहा है चलन भी घरों का,
इमारत बड़ी घर बड़ा अब कहाँ है !

फलित अब न होतीं दुआएँ-बलाएँ,
कथन में रहा वो असर अब कहाँ है !

गहन है उदासी वदन पर तुम्हारे,
चपलता भरी वो नजर अब कहाँ है !

सभी का जहां ये वतन भी सभी का,
मगर एकता की झलक अब कहाँ है !

रहन भी सहन भी बदल सब गया है,
बड़ों की घरों में कदर अब कहाँ है !

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Saturday, 1 November 2025

चल पड़े अंतिम सफर पर...

चल पड़े अंतिम सफर पर,
अब न तुम पर भार होंगे।
अलविदा कह इस जगत को,
जल्द ही उस पार होंगे।

चिरविदा दो अब हमें तुम।
वक्त अंतिम आ रहा है।
बुझ रहे सब दीप, दृग में
तम घना सा छा रहा है।
बोल दो दो बोल मन के,
साथ ये  उपहार होंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)