Monday, 5 August 2024

चला आया घुमड़ सावन...

एक मुक्तक...

चला आया घुमड़ सावन, नहीं आए मगर साजन।
टपकती छत सतत मेरी, छवाऊँ अब कहाँ छाजन ?
दुलारा है तुम्हारा ये, मगर मुझको सताता है।
कहो भोले मुझे ही क्यों, बनाया कोप का भाजन ?

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )




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