Sunday, 12 May 2024

मातृ दिवसः मनोव्यथा एक किन्नर की...

माँ की ममता, मातृभूमि सुख, चख न पाए कभी हम।
दर्द को अपने दिल में समेटे, घुटते आए सदा हम।
फेर मुँह  अनजान डगर पर,  छोड़ा  मात-पिता ने।
भार गमों  का हँसते-रोते,  ढोते  आए  सदा  हम।

देवी-देव तुम मन-मंदिर के, तुम्हें जपेंगे तुम्हें भजेंगे।
जनें न चाहे अगली पीढ़ी, सेवा लेकिन सदा करेंगे।
अपना कहकर हमें पुकारो, सीने से लगाकर देखो।
तज देंगे हर सुख हम अपना, पर हम तुमको नहीं तजेंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

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