Tuesday, 28 May 2024

कौन ग्रेस तुममें रहा...

कौन ग्रेस तुममें रहा, बोलो तो कांग्रेस ?
पंजे में अब दम कहाँ, हार रहा हर रेस।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Saturday, 25 May 2024

लगा आज से नौतपा...

लगा आज से  नौतपा, तपता सूर्य प्रचंड।
आग उगलता आ रहा,  हुआ बहुत उद्दंड।।

भीषण गरमी फिर उमस, फिर आए बरसात।
चले नौतपा नौ दिवस,      तपे धरा का गात।।

तीन-तीन दिन क्रम चले, ग्रीष्म उमस बरसात।
चले नौतपा नौ दिवस,       तपे धरा का गात।।

चले रोहिणी ओर रवि, बढ़ा धरा का ताप।
दूर करो घन ये उमस,    बेगि हरो संताप।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
फोटो गूगल से साभार

Friday, 24 May 2024

भाई मुझको बुला रहा है...

भीगी आँखें देख रही हैं,
चित्र कुछ धुँधले बचपन के !
बाँहों का अपनी पलना बनाकर,
भाई मुझको झुला रहा है !

कभी खींचता नाक मेरी,
कभी खींच देता है चोटी !
कभी कहता गुड़िया, मुनिया,
कभी चिढ़ाता कहकर मोटी !

उलटे सीधे नाम रखकर,
कैसे वो मुझको रुला रहा है !

कल जल्दी फिर उठना है,
अब तो प्यारी बहना सो जा !
कल कर  लेंगे बातें बाकी,
अब मीठे सपनों में खो जा !

आँखों में अपनी नींद लिए
थपकी दे मुझको सुला रहा है ।

पर क्या ! आज उदास बहुत वो,
किसी गम ने उसको घेरा है !
कहता है राह न सूझती कोई,
मन में छाया गहन अँधेरा है ! 

कुछ अपने मन की कहने को,
भाई मुझको बुला रहा है ।

रोको न कोई आज मुझे,
खोल दो इन पाँव की बेड़ी !
जाना ही होगा आज मुझे,
डगर हो चाहे कितनी टेढ़ी !

काँधे पर मेरे सर रखने को,
भाई मुझको बुला रहा है !
     मेरा भाई मुझको बुला रहा है !

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Thursday, 23 May 2024

बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...

मधुर शहद की बूँद सम, परम ज्ञान की सीख।
समझ बुद्ध की देशना,          जैसे मीठी ईख।।

पंचशील धारण करे,      रखे आत्मा शुद्ध।
तब जाकर मानव बने, बोधिसत्व से बुद्ध।।

सहज भाव सम्यक् वरे, करे स्वयं से युद्ध।
पारमिताएँ पूर्ण कर,     बने बोधि से बुद्ध।।

मनसा-वाचा-कर्मणा, सरल-विमल-अति शुद्ध।
दया-भाव जिसमें भरा,      कहते उसको बुद्ध।।

सुनो  बुद्ध  की  देशना, गुनो कथ्य का सार।
अनथक पथ बढ़ते चलो ,  पा जाओगे पार।।

मन को अपने जानकर, बढ़ चल मन के पार।
करुण दृष्टि हर जीव पर, सुख का सम्यक् सार।।

अंतर्मन ज्योतित रहे, बनो स्वयं निज दीप।
रहें आत्म-परमात्म यों, ज्यों मोती अरु सीप।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Sunday, 19 May 2024

लेखनी जब चले...

क्या मिलेगा भला,   मजहबी रार से ?
नाथ लें हम दिलों, को सहज प्यार से।

आ मिलें  सब गले,  क्यों रहें अनमने,
फूल कोई न हो,  अब विलग  हार से।

वो मुझे दोष  दे,      मैं उसे  दोष  दूँ।
जुड़  सकेंगे  न  यों,  तार  करतार से।

क्या सही कर्म  ये,  मानवों  के लिए ?
निर्बलों  को  दलें,  शाक्त  यलगार से।

हैं सभी अंश हम, उस परम तत्व का,
एकजुट सब रहें,    एक परिवार -से।

हाथ  में  हाथ  ले, शपथ  ये लें चलो।
मुक्त  कर  दें  धरा,  दानवी  भार  से।

हो दुआ  बस यही,  बच रहे  ये जहां,
कुदरती  मार  से,  वक्त  के  वार  से।

मैं तुम्हें जान  दूँ,    तुम मुझे  जिंदगी।
हो  यही प्रण सदा,  यार  का  यार से।

बात  'सीमा'  बने, ध्यान  से  सब सुनें।
लेखनी  जब  चले,  तेज  तलवार  से।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र )


Sunday, 12 May 2024

हम सुख़न गाते रहेंगे...

तुम बुलाओ मत बुलाओ, हम मगर आते रहेंगे।
सुख यही तो है हमारा,    हम सुख़न गाते रहेंगे।

अब न हम भी चुप रहेंगे, बात हर खुलकर कहेंगे।
हर कमी हम आपकी भी, सामने लाते रहेंगे।

आदमी ही आदमी को, किस कदर अब छल रहा है।
लाठियाँ हैं पास जिनके, जुल्म क्या ढाते रहेंगे ?

क्या यही है न्याय बोलो, क्या यही दस्तूर जग का ?
काम सारे हम करेंगे,    लाभ वो पाते रहेंगे ?

हम अगर खामोश हैं तो, जीत मत समझो इसे।
छेड़ दें जो राग हम भी,  आप हकलाते रहेंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

मातृ दिवसः मनोव्यथा एक किन्नर की...

माँ की ममता, मातृभूमि सुख, चख न पाए कभी हम।
दर्द को अपने दिल में समेटे, घुटते आए सदा हम।
फेर मुँह  अनजान डगर पर,  छोड़ा  मात-पिता ने।
भार गमों  का हँसते-रोते,  ढोते  आए  सदा  हम।

देवी-देव तुम मन-मंदिर के, तुम्हें जपेंगे तुम्हें भजेंगे।
जनें न चाहे अगली पीढ़ी, सेवा लेकिन सदा करेंगे।
अपना कहकर हमें पुकारो, सीने से लगाकर देखो।
तज देंगे हर सुख हम अपना, पर हम तुमको नहीं तजेंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Saturday, 11 May 2024

माँ से ये संसार....

सर पर माँ के हाथ बिन, मिले कहाँ आराम।
माँ तेरे आँचल तले,           मेरे चारों धाम।।

जग में ऐसा कौन जो,  माँ सा करे दुलार।
आँसू जब-जब देखती, लेती झट पुचकार।।

है धरा पर स्वर्ग जैसा,  मायका हम बेटियों का।
है यही फीके जगत में, जायका हम बेटियों का।
सच यही दौलत हमारी,  जी रहे जिसकी बदौलत,
ये छुपा इक स्रोत है जी, आय का हम बेटियों का।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Monday, 6 May 2024

देख सिसकता भोला बचपन...

सुरभित सृजन" में प्रकाशित मेरी तीन स्वरचित मौलिक रचनाएँ...

१- देख सिसकता भोला बचपन...

देख सिसकता भोला बचपन,
भारी बोझ तले।
क्या किस्मत है इन बच्चों की,
मन में सोच पले।

पूर्ण तृप्ति के एक कौर को,
कैसे  तरस  रहे।
सामने मालिक मूँछो वाले,
इन पर बरस रहे।
हल न कोई पीर का इनकी,
बेबस हाथ मले।

दिन पढ़ने-लिखने के, पर ये
कचरा बीन रहे।
जीवन पाकर भी मानव का,
भाग्य-विहीन रहे।
हास-हौंस-उल्लास बिना ही,
जीवन चला चले।

कोई खाए पिज्जा बर्गर,
कोई जूस पिए।
घूँट सब्र का पी रहे ये,
दोनों होंठ सिए।
छप्पन भोग भरी थाली का,
सपना रोज छले।

खिलने से पहले ही कोमल,
कलियाँ मसल रहे।
हाय कहें क्या अपने जन ही,
सपने कुचल रहे।
सुनी करुण जो गाथा इनकी,
आँसू बह निकले।

कोई कहे मनहूस इनको,
कोई करमजला।
कौन कहे कैसे सँवरेगा,
इनका भाग्य भला।
विपदा जमकर बैठी ऐसे,
टाले नहीं टले।

पाएँ वापस बचपन अपना,
मोद भरे उछलें।
मुक्त उड़ान भरें पंछी-सी,
कोमल पंख मिलें।
सुलभ इन्हें भी हों सारे सुख
मेरी दुआ फले।

२- अपनी गजब कहानी...

मैं हूँ उसका राजा बाबू,
वो है मेरी रानी।
अपनी गजब कहानी।

उसकी खातिर सारे जग से,
नाता मैंने तोड़ा।
उसे खिलाता छप्पन व्यंजन,
पर खुद खाता थोड़ा।
बनी रही अंजान मगर वह,
कदर न मेरी जानी।
अपनी गजब कहानी...

बहुत प्रिया के नखरे देखे,
बहुतहिं करी चिरौरी।
उसे मनाने अल्मोड़ा से,
लाया ढूँढ सिंगौरी।
फूली कुप्पा बनी रही वह,
एक न मेरी मानी।
अपनी गजब कहानी...

कभी प्यार से कहती मुझसे,
सुन ओ मेरे राजा।
बिन तेरे मैं जी न सकूँगी,
रूठ के मुझसे न जा।
साथ-साथ बस हँसते-रोते,
हमको उम्र बितानी।
अपनी गजब कहानी...

रुनझुन-रुनझुन पायल उसकी,
गीत-गज़ल सब गाती।
रह जाता मैं देख ठगा-सा,
बात न मुँह तक आती।
आती जब-जब पास मिरे वो,
ओढ़ चुनरिया धानी।
अपनी गजब कहानी...

कभी प्यार से गले लगाती,
आँखें कभी दिखाती।
कहकर बुद्धू भोला मुझको,
कितने सबक सिखाती।
लगे नहीं रति से कमतर, जब
बातें करे रुमानी।
अपनी गजब कहानी...

सूनी उस बिन दिल की नगरी,
सूना ये घर-आँगन।
नेह-सिक्त आँचल बिन उसके,
बीते सूखा सावन।
हाथ में उसका हाथ रहे तो,
हर रुत लगे सुहानी।
अपनी गजब कहानी...

३- कुछ दोहे...

मेरी भी प्रभु सुध धरो, छुपा न तुमसे हाल।
पीर गुनी जब भक्त की, दौड़ पड़े तत्काल।।१।।

समता उसके रूप की, मिले कहीं ना अन्य।
निर्मल छवि मन आँककर, नैन हुए हैं धन्य।।२।।

दिल में उसकी याद है, आँखों में तस्वीर।
उलझे-उलझे ख्वाब की, कौन कहे ताबीर।।३।।

चाहे कितना हो सगा, देना नहीं उधार।
एक बार जो पड़ गयी, मिटती नहीं दरार।।४।।

पुष्पवाण साधे कभी, साधे कभी गुलेल।
हाथों में डोरी लिए, विधना खेले खेल।।५।।

प्रक्षालन नित कीजिए, चढ़े न मन पर मैल।
काबू में आता नहीं,   अश्व  अड़ा  बिगड़ैल।।६।।

एक बराबर वक्त है, हम सबके ही पास।
कोई सोकर काटता, कोई करता खास।।७।।

कला काल से जुड़ करे, सार्थक जब संवाद।
कालजयी रचना बने, लिए  सुघर  बुनियाद।।८।।👍

मन से मन का मेल तो, भले कहीं हो देह।
प्यास पपीहे की बुझे, पीकर स्वाती-मेह।।९।।

बात-बात पर क्रोध से, बढ़ता मन-संताप।
वशीभूत प्रतिशोध के, करे अहित नर आप।।१०।।

क्षणभर का आवेग यह,  देर तलक दे शोक।
भाव प्रबल प्रतिशोध का, किसी तरह भी रोक।।११।।

© डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ0प्र0 )


Saturday, 4 May 2024

पंजे में वो दम कहाँ...

कोनो ग्रेस रहा नहीं, अब तुममें काँग्रेस।
पंजे में वो दम कहाँ,   हार रहा हर रेस।।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद