Thursday 18 February 2021

हम-तुम दीपक-बाती...

हम-तुम दीपक-बाती...

वो रात कभी तो आती
तुम होते  साथ मेरे  मैं जी  भर  तुमसे  बतियाती
मुँह  छुपा  सीने  में  तुम्हारे  बेसुध  हो  सो जाती
पाकर  साथ  तुम्हारा  फूली  न  खुद  में  समाती
निश्छल नेह तुम्हारा  मेरी जनम-जनम की थाती
तुम कान्हा मैं मीरा रच-रच  गीत प्रणय के गाती
आ जाती जब  नींद  तुम्हें  मैं धीमे  से उठ जाती
निरखती मुखड़ा तुम्हारा आनंद अलौकिक पाती
लिखती-मिटाती रहती  मैं  नाम की तुम्हारे पाती
राह तकती अथक तुम्हारी पलक-पाँवड़े बिछाती
चुन स्मृतियाँ मधुर सजीली मन का द्वार  सजाती
मिल हर लेते तम गम का  हम-तुम दीपक-बाती
-सीमा
मुरादाबाद

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