हम-तुम दीपक-बाती...
वो रात कभी तो आती
तुम होते साथ मेरे मैं जी भर तुमसे बतियाती
मुँह छुपा सीने में तुम्हारे बेसुध हो सो जाती
पाकर साथ तुम्हारा फूली न खुद में समाती
निश्छल नेह तुम्हारा मेरी जनम-जनम की थाती
तुम कान्हा मैं मीरा रच-रच गीत प्रणय के गाती
आ जाती जब नींद तुम्हें मैं धीमे से उठ जाती
निरखती मुखड़ा तुम्हारा आनंद अलौकिक पाती
लिखती-मिटाती रहती मैं नाम की तुम्हारे पाती
राह तकती अथक तुम्हारी पलक-पाँवड़े बिछाती
चुन स्मृतियाँ मधुर सजीली मन का द्वार सजाती
मिल हर लेते तम गम का हम-तुम दीपक-बाती
-सीमा
मुरादाबाद
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