Thursday, 9 January 2025

गीत न मेरे मरने देना...

गीत    मेरे  मरने  देना....

शपथ  तुम्हें  है बाद  मेरे,
गीत    मेरे  मरने  देना

'मके  मेरे म के सब',
आज तुम्हारे  ाम किए।
सहज समर्पण  है ये मेरा,
चाव मधुर अभिराम लिए।
मेरे  सुपालित भावों  के,       
पात हरित  झरे देना

भरे हैं थोक में दुःशास
भूले बैठे हर अुशास
द्रुपद-सुता-सी पीर मेरी,
दबी-ढकी-सहमी एकवस
कायरों की भरी सभा में,
चीर  उसका हरे देना

माा जग े ढाए कहर।
पा सकी सुकूं  एक पहर।
गुम हो अँधेरों में सोऊँगी,
जीव-जोत जाएगी ठहर।
छुपी रही जो अब तक सबसे,
पीर  कभी उघरे देना

े वाली पीढ़ी को तुम,
व्यथा  मेरी बतलाा।
रफ्तार थमे  जीव की,
कथा  मेरी दोहराा।
आस्था जग में ित बी रहे,
हास  मुख का झरे देना

खायीं पग-पग पर जो चोटें।
कुछ कर्म किए होंगे खोटे।
चली चाल किस्मत े ऐसी,
पिटीं सभी  मेरी  ही  गोटें।
शाश्वत  शय-कक्ष  में  मेरे,
पग  उसे अब धरे देना

क्या अब कोई सुख पाा है।
ठूँठ खड़ा कब ढह जाा है।
उड़ा बाष्प ब ताप हृदय का,
मेघ-सरीखा बह जाा है।
रहें  सुरक्षित  दर-दीवारें,
सेंध  घर में लगे देना

गीत    मेरे  मरने  देना।

© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
साझा संग्रह "ख्याल" में प्रकाशित