Tuesday, 19 March 2024

आया फागुन मास...


नस-नस में रस पूरता, आया फागुन मास।
रिसते रिश्तों में चलो,  भर दें नयी उजास।।१।।

झरते फूल पलाश के,  लगी वनों में आग।
रंग बनाएँ पीसकर, खेलें हिलमिल  फाग।।२।।

आयी रे होली सजन, आओ खेलें रंग।
इस मस्ती हुडदंग में, झूमें पीकर भंग।।३।।

हर्षोल्लास उमंग ले,   आया फागुन मास।
कृष्ण बजाएँ बाँसुरी,  करें  गोपियाँ  रास।।४।।

श्री राधे की लाठियाँ, श्री कान्हा की ढाल।
बरसाने की छोरियाँ, नंदगांव के लाल।।५।।

भर मस्ती में झूमते, मन में लिए उमंग।
हुरियारे - हुरियारिनें,    रँगे प्रेम के रंग।।६।।

गली-गली में हो रहा,   होली का हुड़दंग।
श्वेत-श्याम सी मैं खड़ी, कौन लगाए रंग।।७।।

नफरत की होली जले, उड़ें प्यार के रंग।
आनंदमय त्यौहार हो, रहें सभी मिल संग।।८।।

होली की शुभकामना, करें सभी स्वीकार।
मनचाही खुशियाँ मिलें, सुखी रहे परिवार।।९।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )


Saturday, 16 March 2024

मन चला प्रभु की शरण में...

मन चला प्रभु की शरण में...

शुद्धता  भर  आचरण   में।
मन चला प्रभु की शरण में।

होम   कर  सब  कामनाएँ,
सिर झुका उसके चरण में।

ओsम का स्वर गूँजता बस,
घोलता  सा  रस  श्रवण में।

गंध  तिरती  है  अगरु  की,  
वायु  के  मृदु   संचरण  में।

 झाँकती  है  भोर  रक्तिम,
रात  के  अंतिम  चरण  में।

दिव्यता का  भाव ही  बस,
भर  रहा    अंतः करण  में।

भाव से  रहता  विमुख जो,
दोष   ढूँढे   व्याकरण   में।

है  पृथक्   सबकी  महत्ता,
कार्य - कर्ता  या  करण में।

ले  अ'सीमा'नंद   जग   के,
रह  सचेतन   जागरण  में।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ. प्र. )

Thursday, 14 March 2024

कभी लूडो कभी कैरम...

कभी लूडो कभी कैरम, कभी शतरंज से यारी।
कभी हो ताश की बाजी, सुडोकू भी रहे जारी।
कहीं लगता नहीं जब मन, इन्हीं से बस बहलता है,
हमें प्रिय खेल ये सारे, लगी है लत हमें भारी।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Wednesday, 13 March 2024

सब दिन एक न होते हैं....

सब दिन एक  न  होते हैं...

नित  परिवर्तित   होते  हैं।
सब दिन एक  न  होते हैं।

कैसे   उनको   समझाएँ,
बात - बात  पर  रोते  हैं।

दुख भी  अपने  साथी हैं,
मैल  मनों  का   धोते  हैं।

देखो  अपने  घर  में   ही, 
कहाँ  एक  सब  होते  हैं।

कुछ के हिस्से कलियाँ तो,
कुछ  काँटों  पर  सोते  हैं।

ऐसे  भी  हैं    लोग  यहाँ,
भार  और   का  ढोते  हैं।

मोल समझते पल-पल का,
वक्त  न  अपना  खोते  हैं।

रत  रहते    परमारथ    में
बीज  खुशी  के  बोते   हैं।

© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Tuesday, 12 March 2024

आया कलयुग घोर...

कांजी की इक बूँद से,  फटते नहीं समुद्र।
मान न घटता आपका, कह लें कुछ भी क्षुद्र।।

घड़ा पाप का भर गया, आया कलयुग घोर।
चोरी करके हँस रहा,      खड़ा सामने चोर।।

घाघ सरीखे जन हुए, करें न सीधी बात।
घेरे रहता आजकल, भय कोई अज्ञात।।

© सीमा अग्रवाल

Monday, 11 March 2024

बनें आत्मनिर्भर सभी....

रोजगार सबको मिले,  रहे आत्म सम्मान।
बनें आत्मनिर्भर सभी, हो अपनी पहचान।।

बनें योग्य सक्षम सभी, हासिल करें मुकाम।
स्वाभिमान सबमें रहे,    हो न कोई गुलाम।।

उद्यम से सब काम हों, उद्यम बिन जड़ प्राण।
उद्यम को पूजा समझ,      कहते वेद-पुराण।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Saturday, 9 March 2024

आगे-आगे देखिए...

बला और पर डालकर, साध चले निज काज।
देखे हमने आज ही,         ऐसे तिकड़म बाज।।

आगे-आगे देखिए, क्या-क्या करें कमाल।
किसमें इतना दम कहो, इनसे करे सवाल।।

चढ़ा आवरण झूठ का, दिखते हैं झक्कास।
कहने भर के ठाठ बस, भीतर से खल्लास।।

लोभ-द्वेष औ स्वार्थ का, लगा जिन्हें है रोग।
जुड़ पाएंगे क्या कभी,     मन से ऐसे लोग ?

चालू अपनी चाल चल, मंद-मंद मुस्कात।
दुरुपयोग कर शक्ति का, रचता नित उत्पात।।

© सीमा अग्रवाल

Thursday, 7 March 2024

जब हृदय निज देखती हूँ...

जब हृदय निज देखती हूँ।
बस तुम्हें ही देखती हूँ।

शीत की ठंडी लहर में,
हो उतरते ताप से तुम।
जम गए जो भाव उनमें,
लग रहो हो भाप से तुम।
गुनगुनी इस धूप में मैं,
प्राण शीतल सेकती हूँ।

लाँघता हर कामना की,
आज जर्जर देहरी मन।
भावनाएँ पूत सारी,
कर चला तुमको समर्पन।
आज बाँहों को तुम्हारी,
प्राण घायल सौंपती हूँ।

प्यास जीवन की मिटी अब,
भर गए मनकूप सारे।
तिर रहे हैं नैन में बस,
मनलुभावन रूप प्यारे।
अब झुकी दर पर तुम्हारे,
माथ अपना टेकती हूँ।

प्यार जो हमने किया था,
क्या किसी को प्यार होगा ?
प्यार की इस श्रंखला का,
कौन अब हकदार होगा ?
लद गए हा ! दिन सुखद वो
ताल गम की ठोकती हूँ।

मैं खिली सूरजमुखी सी,
ज्येष्ठ का जब सूर्य थे तुम।
काम को मन पर मिली जो,
उस विजय का तूर्य थे तुम।
क्या समय था क्या हुआ अब,
शांत बैठी सोचती हूँ।

बस तुम्हें ही देखती हूँ।
जब स्वयं को देखती हूँ।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
काव्य संग्रह 'पल सुकून के' से

नारी अब अबला नहीं...

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर-

अपनी सुविधा के लिए, जोड़-तोड़ कर कर्म।
नियम पुरुष ने खुद गढ़े, कहा उन्हें फिर धर्म।।१।।

अपराधों का आंकड़ा,  बढ़ जाता हर बार।
नर पर आश्रित नारियाँ, सहने को लाचार।।२।।

जागो जग की नारियों, लो अपने अधिकार।
त्याग तुम्हारा ये पुरूष,    बना रहे हथियार।।३।।

जानें समझें बेटियाँ, अपना हर अधिकार।
निज पैरों पर हों खड़ी, कहे न कोई भार।।४।।

वृत्ति आसुरी त्याग दो, बनो मनुष्य महान।
नारी का आदर करो, पाओ खुद भी मान।।५।।

नारी अब पीछे कहाँ, गढ़ती नव प्रतिमान।
बना रही हर क्षेत्र में, नित नूतन पहचान।।६।।

अब नारी के रूप में, हुआ बहुत बदलाव।
हर क्षण आगे बढ़ रही, पाँव नहीं ठहराव।।७।।

नारी अब अबला नहीं, करती डटकर वार।
अपने पैरों पर खड़ी, नहीं किसी पर भार।।८।।

बढ़चढ़ हर उद्योग में, हासिल करे मुकाम।
घर-बाहर सब देखती, बिना किए आराम।।९।।

नारी बहुत सशक्त है, दीन-हीन मत जान।
सकल सृष्टि की जननी, शक्ति-पुंज महान।।१०।।

नारी नर की जननी, नारी जगत- आधार।
ये सृष्टि क्या सृष्टा भी, बिन नारी निरधार।।११।।


न हो आश्रित कभी नर पर, इसी में श्रेय नारी का।
खड़ी हो पैर पर अपने, प्रथम हो ध्येय नारी का।
जना ब्रह्मांड है जिसने, भला कमतर किसी से क्यों ?
करे जो मान नारी का, वही हो प्रेय नारी का।

डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र )