Monday, 30 October 2023

बात तुम्हारी ही चलती है...

बात तुम्हारी ही चलती है....

पंछी जब कलरव करते हैं।
उपवन-उपवन गुल खिलते हैं।
शीतल मंद हवा चलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

सूरज हो या चाँद-सितारे।
धुंधलके हों या उजियारे।
उपादान सब ये कुदरत के,
जब जो होते साथ हमारे।
सूने मन बाती जलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

सुईं घड़ी की चलती प्रतिपल।
नदियाँ बहती जातीं कलकल।
पल रोके से कब रुक पाते,
बढ़ते जाते आगे अविरल।
साँझ सुहानी जब ढलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

वर्षों बाद तुम्हें जब देखा।
उभर आयी स्मित की रेखा।
अनथक हमने तुम्हें निहारा,
किए रहे पर तुम अनदेखा।
आस-किरन रह-रह छलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

झेल न पाते जग के पहरे।
तिरें नयन में ख्वाब सुनहरे।
इच्छाओं के पंख रुपहले,
दुबकें जाकर दिल में गहरे।
याद न टाले से टलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

रस्ता तक-तक नयना हारे।
बहते आँसू ज्यों परनारे।
नहीं लिखा था मिलन भाग्य में,
आते कैसे फिर तुम द्वारे।
हसरत भी आँखें मलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

यंत्रचलित सा हर दिन बीते।
लौटें लेकर अरमां रीते।
सूर्य जलधि के अंक समाता,
हौले से संझा ढलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"मनके मेरे मन के" से

Saturday, 28 October 2023

आज रात कोजागरी....

पसरी भू पर चाँदनी, आया अमृत काल।
शरदचंद्र का आगमन, ज्योतित नभ का भाल।।

शरद पूर्णिमा पर करें,  कोजागर उपवास।
जाग्रत रहते जन जहाँ, करती लक्ष्मी वास।।

धरती  ने  धारण  किया,  मोहक  हीरक  हार ।
शीतल  नूतन  भाव का,  कन-कन  में  संचार ।।

मन-गगन  में  तुम मेरे,  चमको  बन कर चाँद ।
नयन  निमीलित  मैं करूँ,  देखूँ  गुपचुप चाँद ।।

उलझ-उलझ कर मेघ से, चंदा हुआ उदास।
मेघों रस्ता दो उसे,      रजनी तकती आस।।

आज रात कोजागरी,  बरसे अमृत - धार।
धवल चाँदनी से पटा, देख सकल संसार।।

वर-अभय कर-कमल लिए, विचरें श्री भूलोक।
रात जाग जो व्रत करे,    हर लें उसका शोक।।

चलीं भ्रमण पर लक्ष्मी, धरे अधर पर मौन।
आज रात कोजागरी,     जाग रहा है कौन ?।।


© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
'किंजल्किनी' से

Tuesday, 24 October 2023

ऐसे नहीं मरेगा रावण...

पुतले जितने फूँकोगे उतना अट्टहास करेगा रावण।
                                     ऐसे नहीं मरेगा रावण।
जितने शीश हरोगे उसके  उतने रूप धरेगा रावण।
                                     ऐसे नहीं मरेगा रावण।

जिस रावण को तुम चले मारने वो तो अब है ही नहीं।
जिस त्याग से राम ने मारा  भाव वो तुममें है ही नहीं।

मारना चाहते हो यदि रावण, 
अपने अहम का रावण मारो।
यूँ ही खुद को राम न समझो,
खुद गर्जी का  दानव संहारो।

रहेगा मन विकृत जब तक भीतर वास करेगा रावण।
                                     ऐसे नहीं मरेगा रावण।

मारना चाहते हो गर रावण मन-वाण साधना सीखो।
विषयासक्त निज इंद्रियाँ संयम-डोर से नाथना सीखो।

मर्यादित तुमको होना होगा।
त्याग राम- सा करना होगा।
अपने भीतर का हर विकार,
पहले  तुमको  हरना  होगा।

रोपोगे जो रामत्व मन में खुद ही आन मरेगा रावण।
                                     ऐसे नहीं मरेगा रावण।

पुतले जिसके फूँक रहे तुम वह तो राम का रावण था।
था अति ज्ञानी बलशाली नहीं तुम जैसा साधारण था।

खातिर बहन की सिया हरी।
हाथ न  लगाया  रखी  खरी।
देवानुदानित, वरदानित वह,
नाभि उसकी अमृत से भरी।

हो असाधारण यूँ ही अकारण तुमसे नहीं मरेगा रावण।
पुतले जितने फूँकोगे उतना अट्टहास करेगा रावण।

                                   ऐसे नहीं मरेगा रावण।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
'मृगतृषा' से

Sunday, 15 October 2023

शैलपुत्री मातु प्रथम...

शैलपुत्री मातु प्रथम,   धारे हस्त त्रिशूल।
भक्तन की रक्षा करे, हर ले जग के शूल।।

अर्द्ध चंद्र मस्तक फबे, कर सोहे त्रिशूल।
ताप हरो  माँ शैलजे, हर  लो सारे  शूल।।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Friday, 13 October 2023

जीवन क्या है, एक सफर है...

जीवन क्या है....

जीवन क्या हैएक सफर है
आगे क्या हो, किसे खबर है

चलें साथ सब,
हँसते  -  गाते।
बात     बनाते, 
मौज    मनाते।
मस्त मगन मन, लहर-लहर है

कदम-कदम पर,
रचे दरीचे।
गढ़ें न कंटक,
बिछे गलीचे।
कुदरत अपनी, घनी सुघर है

नजर से उसकी,
बचे न कोई।
स्वांग झूठ का,
रचे न कोई।
पल-पल की वह, रखे खबर है

बढ़ चल आगे,
आँखें मीचे।
कोई कितना,
पीछे खींचे।
लक्ष्य अनूठा, कठिन डगर है

गढ़ पथ नूतन,
छोड़ निशानी।
बाद  पीढ़ियाँ,
कहें   कहानी।
काया यश की, अजर-अमर है

कुछ भी कहते,
कहने वाले।
करके रहते,
करने वाले।
करता  काहे,     अगर-मगर है

प्रेम     बाँटता,
बढ़ चल आगे।
जोड़ जगत से,
नेहिल    धागे।
दुआ दवा सी,     करे असर है

तुझसा तू ही,
एक अकेला,
बीच साम्य ही,
करे झमेला।
क्यों ना अपनी, करे फिकर है

ढुलमुल दुनिया,
की क्यों माने।
फितरत उसकी,
कौन न जाने ?
कभी इधर तो, कभी उधर है

योद्धा पथ में
बहुत मिलेंगे।
लक्ष्य-सिद्धि में,
डटे  मिलेंगे।
समझ न इतना,  सुकर समर है

साथ वक्त के,
चले सदा जो।
नब्ज वक्त की,
पकड़ सके जो।
वक्त उसी की,     करे कदर है

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
'मनके मेरे मन के' में प्रकाशित

Thursday, 12 October 2023

तू भी अपनी बोल...

अपने-अपने काम का, पीट रहे सब ढोल।
फर्क न कुछ हम पर पड़े, तू भी अपनी बोल।।

सिर्फ दिखावा-शान में, कहकर झूठी बात।
करते साबित तुम स्वयं, ओछी अपनी जात।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

कतरा-कतरा जिंदगी...

कतरा-कतरा जिंदगी, रिसती आठों याम।                 
सर पर भारी बोझ है, मिले कहाँ आराम।।

खिलने से पहले सदा, मुरझे वदन-सरोज।
सिरहाने रक्खी मिलें,     चिंताएँ हर रोज।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday, 3 October 2023

हरकत में आयी धरा...

हरकत में आयी धरा, लाजिम उसका क्रोध।
हद से बढ़ते जुल्म जब, कौन न ले प्रतिशोध।।

हुए तब्दील अश्म में, पल में भौतिक भोग।
चित्रलिखित से देखते,  हक्के-बक्के लोग।।

धरती को बंधक बना, साध रहे तुम स्वार्थ।
कंपन उसका क्या कहे, समझो नर गूढ़ार्थ।।

थर्रा उठी बसुंधरा,  डोल उठा स्थैर्य।
जुल्मों को सहता रहे, आखिर कब तक धैर्य ?

धरती को जूती समझ, चलते सरपट चाल।
बिलट गयी जो ये कभी,   कर देगी बेहाल।।

धरती को नित दुह रहे,  होकर हम बेफिक्र।
उस पर होते जुल्म का, करें कभी तो जिक्र।।

जग औचक थर्रा गया, आया जब भूकंप।
अफरातफरी सी मची, मचा खूब हड़कंप।।

-© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद